तुलसीदास की कवितावली भारतीय काव्य साहित्य में एक अमूल्य रत्न है। इसमें तुलसीदास जी ने भक्ति, प्रेम, और भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा को सुंदर रूप में व्यक्त किया है। उनकी कविताओं में जीवन के गहरे सत्य, समाज की स्थितियों, और मानवता की गरिमा का चित्रण किया गया है। नीचे दी गई कविता एक विशेष उदाहरण है, जिसमें तुलसीदास जी ने प्रेम, भक्ति और भगवान के गुणों का अद्भुत चित्रण किया है।
1. अवधेस के द्वारे सकारे गई सुत गोद में भूपति लै निकसे।
इस पंक्ति में तुलसीदास जी ने एक दृश्य प्रस्तुत किया है जिसमें एक राजा की पत्नी अपने पुत्र के साथ द्वार पर खड़ी है। यह दरवाजे पर आना और राजा की गोद में उसे खिलाना एक संस्कृत परंपरा का प्रतीक है। यह दृश्य राजा के परिवार के साथ जुड़ी पारंपरिक धरोहर को दर्शाता है।
2. अवलोकि हौं सोच बिमोचन को ठगि-सी रही, जे न ठगे धिक-से।
यह पंक्ति हमें यह संदेश देती है कि जब व्यक्ति अपने मोह-माया के जाल में फंसा होता है, तो उसे कभी-कभी यह एहसास होता है कि वह ठगा गया है। यह पंक्ति जीवन के सत्य को उजागर करती है कि जब तक हम संसार के भव्यता और माया से अछूते नहीं होते, तब तक हमें सही मार्ग नहीं मिलता।
3. ‘तुलसी’ मन-रंजन रंजित-अंजन नैन सुखंजन जातक-से।
यह पंक्ति रंजन और अंजन के संदर्भ में है, जो शास्त्रीय संगीत और सुंदरता का प्रतीक हैं। तुलसीदास जी ने इस पंक्ति के माध्यम से एक व्यक्ति की भावनाओं और आत्मा की शुद्धता का उल्लेख किया है।
4. सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह-से बिकसे।
इसमें तुलसीदास जी ने चंद्रमा को ‘ससि’ और नीले कमल को ‘नवनील सरोरुह’ से जोड़ा है, जो प्रकृति की सुंदरता और भावनाओं का प्रतीक हैं। यह पंक्ति प्रेम और सौंदर्य को दर्शाती है, जिसमें चंद्रमा और कमल के फूल एक साथ खिलते हैं।
5. तन की दुति श्याम सरोरुह लोचन कंज की मंजुलताई हरैं।
यह पंक्ति भगवान श्री कृष्ण की सुंदरता का वर्णन करती है। श्याम वर्ण और सुंदर कंज आंखें इस पंक्ति के मुख्य चित्र हैं, जो भगवान की आकर्षक रूप और उनकी दिव्यता को दर्शाती हैं।
6. अति सुंदर सोहत धूरि भरे छबि भूरि अनंग की दूरि धरैं।
यह पंक्ति प्रेम के प्रतीक रूप में भगवान श्री कृष्ण के आकर्षण और लास्य को व्यक्त करती है। भगवान के शरीर पर भरे हुए धूल के कण उनकी सुंदरता को और बढ़ा देते हैं, जैसे प्रेम की ज्वाला बढ़ती जाती है।
7. दमकैं दँतियाँ दुति दामिनि ज्यों किलकैं कल बाल बिनोद करैं।
तुलसीदास जी ने यहां दांतों की चमक और नृत्य को सौंदर्य का प्रतीक बनाया है। जैसे बिजली के चमकने से आकाश रोशन हो जाता है, वैसे ही भगवान के दांतों की चमक से मनुष्य का दिल रोशन होता है।
8. अवधेस के बालक चारि सदा ‘तुलसी’ मन मंदिर में बिहरैं।
इस पंक्ति में तुलसीदास जी ने भगवान के चारों रूपों की पूजा की भावना का उल्लेख किया है। मनुष्य को भगवान के हर रूप में अपने दिल को वास करना चाहिए, यही असली भक्ति है।
9. सीस जटा, उर बाहु बिसाल, बिलोचन लाल, तिरीछी सी भौंहैं।
यह पंक्ति भगवान के रूप का विस्तृत चित्र प्रस्तुत करती है। उनके सिर पर जटा, विशाल बाहु और लाल आंखें हैं, जो उनकी दिव्य शक्ति और भव्यता को दर्शाती हैं।
10. तून सरासन-बान धरें तुलसी बन मारग में सुठि सोहैं।
यह पंक्ति भगवान के शस्त्र और उनकी वीरता का प्रतीक है। शास्त्र और बाण के साथ भगवान का रूप न केवल शक्तिशाली है, बल्कि एक आदर्श भी प्रस्तुत करता है।
11. सादर बारहिं बार सुभायँ, चितै तुम्ह त्यों हमरो मनु मोहैं।
इस पंक्ति में तुलसीदास जी भगवान के प्रति अपने प्रेम को व्यक्त कर रहे हैं। उन्होंने भगवान की महिमा का अनुभव करते हुए उन्हें बार-बार नमन किया है।
12. पूँछति ग्राम बधु सिय सों, कहो साँवरे-से सखि रावरे को हैं।
यह पंक्ति भगवान के लुक और उनके आकर्षण की बात करती है। भगवान का रूप और लुभावन बातें ग्राम वधू (सीता) से पूछी जा रही हैं, यह उनकी अपूर्व सुंदरता और आकर्षण का प्रतीक है।
13. सुनि सुंदर बैन सुधारस-साने, सयानी हैं जानकी जानी भली।
यह पंक्ति सीता जी के बारे में है, जिन्होंने भगवान के सुंदर और मधुर संगीत को सुना। उनका सौंदर्य और बुद्धिमत्ता हमेशा भगवान को आकर्षित करती हैं।
14. तिरछै करि नैन, दे सैन, तिन्हैं, समुझाइ कछु मुसुकाइ चली।
यह पंक्ति बताती है कि भगवान अपने दिव्य रूप में सीता जी से मुलाकात करते हैं, और वे मुस्कुराते हुए अपनी बातों से उनका दिल छू लेते हैं।
15. ‘तुलसी’ तेहि औसर सोहैं सबै, अवलोकति लोचन लाहू अली।
यहां तुलसीदास जी ने अपने भक्तों से कहा है कि भगवान का रूप केवल भक्तों के लिए है, जो उनके प्रति सच्ची भक्ति और प्रेम रखते हैं।
निष्कर्ष:
तुलसीदास जी की कवितावली का हर एक शब्द भक्ति, प्रेम और भगवान के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है। उनके काव्य में जीवन के गहरे अर्थ, सत्य, और दर्शन का अद्वितीय चित्रण है। उनकी कविताओं में भगवान की सुंदरता, उनके कृत्यों और उनकी महिमा का वर्णन अत्यंत भावनात्मक और प्रेरणादायक है। इन कविताओं का उद्देश्य केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक मार्गदर्शन है जो मानवता को सद्गति की ओर प्रेरित करता है।