Jun 19, 2025

त्रिवेणी संगम प्रयागराज तीन पवित्र नदियों का मिलन स्थल

भारत की संस्कृति में नदियों को माता के रूप में पूजा जाता है। गंगा, यमुना और सरस्वती न केवल नदियाँ हैं, बल्कि अध्यात्म, श्रद्धा और मोक्ष का प्रतीक भी हैं। जब ये तीनों नदियाँ एक स्थान पर मिलती हैं, तो उस स्थल को “त्रिवेणी संगम” कहा जाता है।

सबसे प्रसिद्ध त्रिवेणी संगम उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (पूर्व नाम इलाहाबाद) में स्थित है। यह वह पावन स्थान है जहाँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियाँ मिलती हैं। इस संगम को हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना गया है। यहाँ स्नान करने से पापों का नाश होता है और आत्मा को शांति मिलती है।

 प्रयागराज का त्रिवेणी संगम

प्राचीन काल से ही प्रयागराज को तीर्थराज की उपाधि प्राप्त है। यहाँ गंगा नदी की निर्मल धारा, यमुना की गहराई और सरस्वती की अदृश्य उपस्थिति एक साथ मिलती हैं। सरस्वती नदी अब दिखाई नहीं देती, परंतु धार्मिक मान्यता है कि वह भूमिगत रूप से यहाँ संगम में मिलती है।

गंगा और यमुना का जल अलग-अलग रंगों में दिखाई देता है। गंगा का पानी हल्का साफ-सफेद होता है जबकि यमुना का जल कुछ गहरा नीला दिखता है। सरस्वती अदृश्य रहती है, पर श्रद्धालुओं का विश्वास है कि उसका भी सान्निध्य वहाँ मिलता है।

आध्यात्मिक महत्व

त्रिवेणी संगम केवल एक नदी-घाट नहीं, बल्कि मोक्ष का द्वार माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, यहाँ स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप कट जाते हैं। संगम पर तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से पितरों को शांति मिलती है।

यह स्थान इतना पवित्र माना गया है कि यहाँ महाकुंभ और अर्धकुंभ जैसे महोत्सव होते हैं, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। संतों, महंतों, अखाड़ों और योगियों का एक महासंगम वहाँ दिखाई देता है।

 त्रिवेणी संगम का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व

त्रिवेणी संगम का वर्णन वेदों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में मिलता है। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने यहाँ सृष्टि का पहला यज्ञ किया था। यही कारण है कि यह स्थल तीर्थों में श्रेष्ठ माना जाता है।

महाभारत काल में भी यह स्थान विशेष रूप से महत्व रखता था। पांडवों ने अपने वनवास के दौरान यहाँ आकर स्नान किया था और तप किया था। कई ऋषि-मुनियों ने यहाँ साधना की थी।

 संगम का दर्शन और गतिविधियाँ

संगम स्थल पर लोग नाव द्वारा जाते हैं। नदी के बीच में वह स्थान है जहाँ तीनों नदियाँ मिलती हैं। वहाँ जाकर श्रद्धालु स्नान करते हैं, पूजा करते हैं और तर्पण आदि कर्म भी संपन्न करते हैं।

संगम पर होने वाली आरती अत्यंत भव्य होती है। दीप, मंत्रोच्चारण और भजन-कीर्तन से वातावरण दिव्यता से भर जाता है।

 कुंभ मेला – संगम की आत्मा

हर 12 वर्षों में यहाँ महाकुंभ मेला आयोजित होता है, और हर 6 साल में अर्धकुंभ। यह पर्व न केवल भारत में, बल्कि पूरे विश्व में आध्यात्मिक महोत्सव के रूप में प्रसिद्ध है।

कुंभ मेले के दौरान, करोड़ों श्रद्धालु संगम तट पर स्नान करते हैं। यह माना जाता है कि इसी स्थान पर अमृत की बूंदें गिरी थीं, जब समुद्र मंथन हुआ था।

 श्रद्धा और आस्था का संगम

त्रिवेणी केवल तीन नदियों का संगम नहीं है, यह आस्था, परंपरा और आत्मा की शुद्धता का प्रतीक है। यहाँ हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग का हो, बिना भेदभाव के स्नान कर सकता है और ईश्वर की कृपा प्राप्त कर सकता है।संगम पर बैठकर ध्यान करना, नदी की लहरों को निहारना और साधुओं के प्रवचन सुनना, आत्मा को गहराई से छू जाता है।त्रिवेणी संगम भारत की अध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है। यह केवल एक स्थान नहीं, बल्कि एक अनुभव है – जिसमें आत्मा को शांति मिलती है, मन को शुद्धता और हृदय को श्रद्धा।यदि आपने जीवन में कभी त्रिवेणी संगम नहीं देखा है, तो अवश्य जाएँ। यह यात्रा न केवल एक धार्मिक अनुभव होगी, बल्कि एक आत्मिक शुद्धिकरण भी होगा।