नवरात्रि के छठे दिन माँ दुर्गा के कात्यायनी रूप की पूजा की जाती है। यह रूप देवी का युद्ध और शक्ति का प्रतीक है। वे राक्षसों का संहार करने वाली देवी हैं। माँ कात्यायनी विशेष रूप से कन्याओं के विवाह की बाधाएं दूर करने वाली देवी मानी जाती हैं।
“कात्यायनी” नाम ऋषि कात्यायन से जुड़ा है। पुराणों के अनुसार, उन्होंने माँ दुर्गा को पुत्री रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तप किया था। देवी ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ऋषि के आश्रम में जन्म लिया, और इसी कारण उन्हें कात्यायनी कहा गया।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी, साहसी और रौद्र है।वे चार भुजाओं वाली हैं।हाथों में तलवार और कमल, एक में वर मुद्रा और एक में अभय मुद्रा होती है।उनका वाहन है सिंह, जो उनके पराक्रम और वीरता का प्रतीक है।उनका रंग सोने सा चमकता हुआ है और मुख पर गंभीरता और करुणा दोनों का मिश्रण है।
माँ कात्यायनी की सबसे प्रसिद्ध कथा महिषासुर वध से जुड़ी है। जब महिषासुर नामक राक्षस ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियों से देवी कात्यायनी प्रकट हुईं।उन्होंने महिषासुर के साथ भीषण युद्ध किया और अंततः उसका संहार कर धर्म की पुनः स्थापना की।इसलिए इन्हें महिषासुरमर्दिनी भी कहा जाता है।
माँ कात्यायनी की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है, विशेषकर कुंवारी कन्याएं अपने विवाह की बाधाएं दूर करने हेतु उपवास रखती हैं।
पूजन विधि इस प्रकार है:
सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।माँ की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएं।गुलाबी या लाल फूल अर्पित करें (माँ को गुलाबी रंग प्रिय है)।
माँ को गुड़-हलवा, केसरयुक्त खीर या मिश्री अर्पित करें।नीचे दिया गया मंत्र जपें
ॐ कात्यायनाय विद्महे कन्याकुमारि धीमहि।तन्नो दुर्गिः प्रचोदयात्॥
आरती करें और सभी को प्रसाद वितरित करें।
माँ कात्यायनी को दुष्टों के संहार और धर्म की रक्षा के लिए जाना जाता है।इनके पूजन से व्यक्ति को साहस, आत्मबल, और निर्भयता प्राप्त होती है।जो कन्याएं विवाह में विलंब या बाधा का सामना कर रही हैं, वे यदि नवरात्रि के छठे दिन माँ की विधिपूर्वक आराधना करें, तो शीघ्र ही विवाह योग बनता है।साधक को आध्यात्मिक शक्तियाँ, शुद्ध अंतःकरण और दृढ़ संकल्प प्राप्त होता है।
उत्तर प्रदेश के काशी में माँ कात्यायनी का मंदिर है।दिल्ली के छतरपुर मंदिर में भी विशाल माँ कात्यायनी मंदिर स्थित है।वैष्णो देवी के त्रिकुट पर्वत पर भी माँ का कात्यायनी रूप विद्यमान माना जाता है।
माँ कात्यायनी का स्मरण और पूजा साधक के जीवन में निडरता, विजय, और विवाह-संपन्नता के योग को सुदृढ़ करता है। यह रूप हमें सिखाता है कि अन्याय और अधर्म के विरुद्ध उठ खड़े होना ही सच्चा धर्म है। जो भक्त श्रद्धा और निष्ठा से माँ कात्यायनी का पूजन करते हैं, उनके जीवन में उन्नति और शांति का वास होता है।