नवरात्रि के सातवें दिन पूजी जाने वाली माँ कालरात्रि, नवदुर्गा के सबसे भयावह और शक्तिशाली रूप मानी जाती हैं। उनका नाम "काल" यानी मृत्यु और "रात्रि" यानी अंधकार से बना है, जो संकेत करता है कि वह अंधकार, भय और मृत्यु पर विजय दिलाने वाली देवी हैं।उनका रौद्र रूप देखने में भयावह होता है, लेकिन यह केवल असुरों और दुष्ट शक्तियों के लिए होता है। भक्तों के लिए वह ममता, सुरक्षा और कृपा की देवी हैं।
माँ कालरात्रि का स्वरूप गहन, तेजस्वी और रहस्यपूर्ण होता है।उनका रंग काजल सा काला है, जो उनके नाम को सार्थक करता है।उनके बाल खुले हुए और बिखरे रहते हैं।उनके गले में वज्र और कण्ठमाला होती है।वह गधे (गरुड़ासुरहा) पर सवार होती हैं।चार भुजाओं में से दो में वह वर मुद्रा और अभय मुद्रा धारण करती हैं और दो हाथों में लोहे का कांटा और वज्र लिए होती हैं।उनकी तीव्र आंखें, अग्नि जैसे श्वास और खुले हुए बाल उनके रौद्र रूप को दर्शाते हैं।
पुराणों के अनुसार, एक समय की बात है जब शुंभ-निशुंभ नामक राक्षस त्रिलोक पर अत्याचार कर रहे थे। तब माँ दुर्गा ने कालरात्रि रूप धारण कर उन पर आक्रमण किया।उन्होंने पहले चण्ड-मुण्ड का वध किया (जिससे उन्हें चामुंडा भी कहा गया)।फिर वे रक्तबीज से युद्ध करने गईं, जो हर बूँद खून गिरने पर नया राक्षस उत्पन्न करता था।माँ कालरात्रि ने अपनी जिव्हा से उसका रक्त पी लिया, जिससे रक्तबीज का अंत हुआ।इस तरह देवी ने अंतिम अंधकार और मृत्यु स्वरूप राक्षसों का विनाश कर दिया और सृष्टि में पुनः संतुलन स्थापित किया।
माँ कालरात्रि की पूजा विशेष रूप से भय से मुक्ति, शत्रु विनाश, तंत्र दोष निवारण और आध्यात्मिक प्रगति के लिए की जाती है।
प्रातः स्नान कर नीले या काले वस्त्र पहनें।माँ कालरात्रि के चित्र या मूर्ति की स्थापना करें।काले तिल, नीले फूल, गुड़ और नारियल का भोग अर्पित करें।धूप-दीप जलाकर नीचे दिया गया मंत्र जपें:
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे।ॐ कालरात्र्यै नमः॥
आरती करें और भोग सबमें वितरित करें।
माँ कालरात्रि की पूजा से भय, जादू-टोना, तंत्र-मंत्र और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।भक्त को निर्भयता, आत्मबल, और तांत्रिक शक्तियों से रक्षा प्राप्त होती है।तंत्र साधक, योगी और साधु इस दिन को विशेष मानते हैं।कुंडलिनी जागरण में यह देवी 'आज्ञा चक्र' की अधिष्ठात्री मानी जाती हैं।जो भी साधक सच्ची श्रद्धा से इनकी आराधना करता है, उसके जीवन से अंधकारमय तत्व समाप्त हो जाते हैं।
माँ कालरात्रि हमें यह सिखाती हैं कि अंधकार चाहे जितना भी गहरा क्यों न हो, प्रकाश की एक किरण उसे दूर कर सकती है। यह देवी भीतर के भय, नकारात्मक विचारों, और आत्म-संदेह का विनाश करती हैं।उनकी पूजा केवल एक देवी की नहीं, बल्कि भीतर के अंधकार को मिटाने की साधना है।
उत्तराखंड के चंद्रबदनी मंदिर को कालरात्रि का रूप माना जाता है।
विंध्याचल, कामख्या, और दक्षिण भारत के कुछ शक्तिपीठों में माँ के इस स्वरूप की पूजा विशेष रूप से होती है।
महाकालेश्वर के पास कालरात्रि की पूजा अष्टमी रात्रि को विशेष होती है
माँ कालरात्रि का स्वरूप हमें जीवन में यह सिखाता है कि जब हम भीतर के डर और अंधकार से लड़ने का साहस करते हैं, तब देवी स्वयं हमारे साथ खड़ी होती हैं। उनके स्मरण मात्र से शत्रु भाग जाते हैं और आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत होती है।