Jun 10, 2025

माँ चंद्रघंटा नवदुर्गा का तीसरा रूप

माँ चंद्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन पूजी जाने वाली नवदुर्गा का तीसरा स्वरूप हैं। ये माँ शांति, करुणा और वीरता की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। इनके मस्तक पर अर्धचंद्र की तरह घंटे के आकार का चिह्न होता है, इसी कारण इन्हें "चंद्रघंटा" कहा जाता है। माँ चंद्रघंटा का रूप सौम्य होने के साथ-साथ अत्यंत पराक्रमी भी है। इनकी उपासना करने से साधक को आत्मबल, निर्भयता और अद्भुत तेज प्राप्त होता है।

 माँ चंद्रघंटा का स्वरूप

माँ चंद्रघंटा का शरीर स्वर्ण के समान चमकीला है और इनके दस भुजाएं हैं। वे शेर पर सवार रहती हैं। उनके दस हाथों में तलवार, त्रिशूल, गदा, कमल, धनुष, बाण आदि शस्त्र रहते हैं, और एक हाथ में वे वरमुद्रा में भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। उनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र स्थित है, जो उन्हें अन्य रूपों से अलग बनाता है। उनका यह रूप युद्ध के लिए सदैव तत्पर दिखाई देता है, फिर भी उनका मुख अत्यंत शांत और करुणामय होता है।

 माँ चंद्रघंटा की कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव से पार्वती का विवाह हुआ, तब उन्होंने चंद्रघंटा का रूप धारण किया। शिवजी श्मशान वासी और भस्मधारी थे, जब बारात लेकर पार्वती के घर पहुँचे, तो उनका रूप अत्यंत भयावह था। पार्वती के परिजन डर गए। तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रौद्र रूप धारण किया और शिव के इस भयंकर रूप को शांत किया। इसके पश्चात विवाह विधिवत संपन्न हुआ। माँ के इस रूप ने यह सिद्ध किया कि स्त्री चाहे जितनी सौम्य हो, पर आवश्यकता पड़ने पर वह रौद्र रूप भी धारण कर सकती है।

आध्यात्मिक महत्व

माँ चंद्रघंटा की उपासना करने से साधक के जीवन में साहस, शक्ति, आत्मविश्वास और भक्ति का विकास होता है। ये देवी साधक के सभी पापों का नाश करती हैं और उसे दिव्य चेतना की ओर अग्रसर करती हैं। ध्यान और योगाभ्यास करने वालों के लिए यह रूप अत्यंत लाभकारी माना गया है, क्योंकि यह साधक को मानसिक स्थिरता, एकाग्रता और भय से मुक्ति प्रदान करता है।

माँ चंद्रघंटा की पूजा विधि

प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।पूजा स्थान पर माँ चंद्रघंटा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।उन्हें केसर, सफेद फूल, चंदन, कमल, घी का दीपक, और नैवेद्य अर्पित करें।पूजा में ॐ देवी चंद्रघंटायै नमःमंत्र का जाप करें।माँ की आरती करें और प्रसाद वितरित करें।रात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ या चंद्रघंटा कवच का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है।

 विशेष लाभ

अशांत मन को शांति मिलती है और डर धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।विवाह योग्य कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ति होती है।जीवन में साहस और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।शरीर और मन दोनों में शक्ति और संतुलन आता है।

बीज मंत्र और स्तुति

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ चंद्रघंटायै नमः

स्तुति:
चंद्राय चंद्रघंटायै भक्तानां भयहारिण्यै।
कृपां कुरु मयि देवि दुर्गे जयमयी नमः॥

माँ चंद्रघंटा और तीसरा चक्र

योग शास्त्रों के अनुसार माँ चंद्रघंटा का संबंध "मणिपुर चक्र" से है, जो नाभि के पास स्थित होता है। यह चक्र ऊर्जा, शक्ति और आत्मबल का केंद्र माना जाता है। इस देवी की साधना से मणिपुर चक्र सक्रिय होता है और साधक को आत्मिक बल की प्राप्ति होती है। 

माँ चंद्रघंटा न केवल शौर्य की प्रतीक हैं बल्कि भक्तों के जीवन में संतुलन, सौंदर्य और सुरक्षा भी प्रदान करती हैं। उनका यह रूप यह दर्शाता है कि एक स्त्री कितनी भी सौम्य क्यों न हो, परन्तु जब अन्याय और अत्याचार होता है, तब वह चंद्रघंटा की तरह रौद्र रूप में प्रकट होकर अधर्म का विनाश कर सकती है। नवरात्रि के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा करके हम अपने जीवन में संतुलन, साहस और आत्मविश्वास को जागृत कर सकते हैं।